मिलन नव वर्ष
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भोर हुई तो कलैंडर की तिथि बदल गई।??????????
देखते -देखते खूबसूरत सांझ बीते कल में ढल गई।
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क्या तुमने देखा वह अनूठा दृश्य ,
जब सांझ जा रही थी और भोर आ रही थी?
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हां मैंने देखा और सुना जो वह दोनों आपस में बतिया रहीं थीं।
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सांझ भोर के कानों में कुछ यूं कह रही थी।??????????
बहन तुम आ रही हो और मैं जा रही हूं।
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किंतु मैं अपने साथ कुछ यादें लिए जा रही जा रही हूं।
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मनुष्यों के हृदय में जगह किए जा रही हूं।
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तुम जो चाहती हो कि २०१९ के पृष्ठों में
छप जाओ।
तो सभी जनों के हृदय में मुझसे बेहतर बस जाओ।
???????????फासले खत्म हों दिलों के , दुर्भावना की पहुंच से कहीं दूर बस जाओ।
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क्योंकि तारीखें तो बदलती चली जाएंगी।
सांझ यूं ही बीते वर्ष की ढलती चली जाएंगी।
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जिंदगी का एक और वर्ष कम हो चला।
वर्षों के आवागमन का जारी है सिलसिला।
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जिसने है जैसा सोचा हूबहू वही मिला।
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मगर क्या सिर्फ तारीखें ही बदलनी चाहिए।
हमारा प्रयास हो कि सोच बदलनी चाहिए।
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खूबसूरत सांझ और रूपहली भोर निकलनी चाहिए।
जब भी किसी से मिलना हो , जिस पर भी चलना हो।
???????????ऐसे मिलों कि हृदय खिल जाए, ऐसे चलो कि मंज़िल मिल जाए।
जिंदगी जिओ कुछ ऐसे अंदाज में कि नज़ीर बनारसी जाए।
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उद्देश्य विहीन मंज़िल कहीं गर्त में ढल गई।
रेखा इस तरह २०१९ की सुनहरी भोर खूबसूरत ख्वाबो और आस में बदल गई।?????????
शब्द रचना रेखा रानी ।
गजरौला जनपद-अमरोहा