“मिलन की आस”
तुम जाओगी तो जाने न देंगे,
जब भी रूठोगी कुछ गुनगुना देंगे,
मुझे पता है तेरी सारी रहगुजरियाँ,
कुछ तुमसे सीखेंगे कुछ सिखा देंगे।
ऐसे क्यों नाराज़ होना हर बात पर,
तुम्हारी सारी दुःस्वरिया निपटा देंगे,
तुम्हे दर्द किस बात का है ये तो बताओ,
एक बार मुस्कुरा तो दो, तुम्हे ज़ोर से हँसा देंगे।
ऐसे क्यों बोलती हो कि मैं वो न रहा,
तुम सारी बातें बताओ तो सही,
तुमने देखा ही कहा मोहब्बत मेरा,
तुम्हे भी मोहब्बत के गुर सिखा देंगे।
हमने बस तुम्हे देख के जीना सिखा है,
ये सच है और ये सच तुम्हे दिखा ही देंगे,
तुम्हारी वही शिकायत वक़्त नहीं है मानता हूं,
एक और मौका दो ढेर सारा वक्त बिता देंगे।
विकास श्रीवास्तव “नवोदयन”