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17 Oct 2021 · 1 min read

मिलते हैं शब्द मुहब्बत को

क्यों मिलते हैं शब्द मुहब्बत को ही?
क्रोध की कविताएँ क्यों नहीं छलकती?
घृणा से ओत-प्रोत जनसंख्या में मनुष्य.
क्यों घृणा की हसरत कलम को नहीं चढ़ती?
उसी दिल की ख्वाहिस है उसी दिल की उपज.
इन्हें कोई कैनवास,कूची क्यों नहीं मिलती?
अहंकार किसी ओट से लुक-छिपकर देखता
इसे कोई नागिन अलंकृत सदा क्यों करती?
इर्ष्या तसल्ली सा उस शख्स को राहत देता.
ह्शीं ख्बाब सा शायर की नजर नहीं पड़ती !
कहते हैं बड़े काम का है काम,दाम,दंड,भेद.
धूर्तता काव्यों में अभागिन सी क्यों दुबक रहती?
कवि गोष्ठियों में यह प्रश्न उछल-उछल के उठे.
चंद बुंद स्याही का इन आत्माओं के भी नाम सजे.
अरुण कुमार प्रसाद

Language: Hindi
214 Views
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