मिलता नहीं किनारा
मिलता नहीं किनारा माँझी यूँ ही बैठे रहने से।
मिलता नहीं सुकून कभी भी विचलित होते रहने से।
बिना कर्म के जग में हर इंसान विफल हो जाता है,
मिल जाती है मंजिल राही, हरदम चलते रहने से।
मिलता नहीं किनारा माँझी यूँ ही बैठे रहने से।
मिलता नहीं सुकून कभी भी विचलित होते रहने से।
बिना कर्म के जग में हर इंसान विफल हो जाता है,
मिल जाती है मंजिल राही, हरदम चलते रहने से।