मिरी ख़मोशी को…
मिरी ख़मोशी को फ़रियाद समझ बैठा है
उधार ले के वो इमदाद समझ बैठा है
मजे की बात तो ये है कि तिरी दुनिया में
शिकार खुद को ही सैय्याद समझ बैठा है
ग़ुलाम हो गया मजहब का,सियासत का,पर
तू अपने आप को आजाद समझ बैठा है
किसी ने कर दी क्या तारीफ ज़रा सी झूठी
वो खुद को मीर की औलाद समझ बैठा है
जो जानता नहीं गहराई से कौशाम्बी को
वो मेरा घर इलाहाबाद समझ बैठा है
वो है गुनाह फ़कत और कुछ नहीं ‘संजय’
जिसे तू गलती से ज़ेहाद समझ बैठा है