मिथ्या
एक अपाहिज पंख विहीन
भूरा मच्छर
मेरी अ-कविता की पुस्तक
रक्त-रंग की अंतिम रचना
रक्त-रस शीर्षक पर बैठा
स्याही का रस चूस रहा था।
चूस रहा था
काले मोटे शब्दों के
स्याही रूपी रक्त में बहते
मेरे बचपन के कोमल
पुष्प सरीखे मन के रस को।
मैं बेबस असहाय कवि
अपलक बैठा देख रहा था
अपनी उस पुस्तक को जिसमे-
छपी थी मेरी अ-कविता में
मेरे जीवन की वह पहली
मिथ्या ही पर
सच्ची घटना ।।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”