मिथ्या अभिमान
हर पल गवाँ रही हूँ
मिथ्याअभिमान संजोने में,
दो पल हीं तो है
जिंदगी,
होना हीं क्या है
मेरे ‘होने’ से ‘न होने’ में!
फिर भी लड़ती हूँ झगड़ती हूँ
झूठी शान को ढोने में,
बना क्यों नहीं लेती
घर,
हर दिल के कोने में!!
07/01/2021
#किसानपुत्री_शोभा_यादव