मिथिलाक सांस्कृतिक परम्परा
जनक, याज्ञवल्क्य, गौतम, गंगेश, मण्डन, विद्यापति, ज्योतिरोश्वरक,जैन आ बौद्ध महिमामयी भूमि मिथिला, न्याय, तत्वमीमांसा एवं सांख्यक जन्मभूमि मिथिला भौगलिक दृष्टिएँ 25°28′ सँ 26° 52′ उत्तर अक्षांश तथा 84° 56′ से 86° 46′ पूर्व देशान्तर मध्य अवस्थित अछि। सीमाक दृष्टिएँ वृहद्विष्णुपुराणमे वर्णित मिथिलाक सीमाक प्रसङ्ग कहल गेल अछि जे मिथिलाक उत्तरमे नागाधिराज हिमालय अपन स्वर्णमुकुट धारण कयने छथि। दक्षिणमे पतित पावनी गंगा अपन कल-कल ध्वनिसँ एकर चरण स्पर्श करैत छथि। पूर्वमे नृत्य करैत कौशिकी छथि तँ पश्चिममे धीर गामिनी गंडकी अपन रूप-रश्मिसँ एकर श्रृंगार करैत छथि। मिथिलाक सीमा निर्धारणक प्रसङ्ग ई श्लोक प्रचलित अछि:-
जाता सा यत्र सीता सरिदमलजला वाग्वती यत्र पुण्या। यत्रास्ते सन्निधाने सुरनगर नदी भैरवी यत्र लिङ्गम। मीमांसान्याय वेदाध्ययन पटुतरैः पण्डितैर्मण्डिताया । भू देवो यत्र भूपो यजन-वसुमती सास्तिमे तीरभुक्तिः ।।
चन्दाझा सेहो अपन रामायणमे मिथिलाक सीमा निर्धारणक प्रसङ्ग उपर्युक्त आधारके स्वीकार करैत छथि। वर्तमान समयमे मिथिलाक चम्पारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मुंगेर, भागलपुर, सहर्रसा, पूर्णिया एवं हिमालयक तराई धरि परसल अछि। मिथिलाक उत्तरी भाग वर्तमान नेपाल राज्यक रौतहट, सरलाही, सप्तरी, महोत्तरी तथा मोरङ्गक इलाकामे पड़ैछ। एहि प्रकारे मिथिला उत्तरमे हिमालयसँ दक्षिणमे गंगा धरि सय मील तथा पूर्वमे महानंदासँ पश्चिममे गंडक धरि 250 मीलमे विस्तृत अछि।
अतिप्राचीन कालसँ मिथिलाक पर्याय तीरभुक्ति नाम प्रचलित छल जे वर्तमान समयमे तिरहुतक नामे प्रसिद्ध अछि। मिथिला एवं तीरभुक्तिक अतिरिक्त एक तेसर नाम विदेहक उल्लेख सत्पथ ब्राह्मणमे भेटेत अछि। बौद्धग्रंथ मे विदेहक उल्लेख मध्यदेशक एक प्रान्तक रूपमे अछि। मध्यदेशक अन्तर्गत बोधगया तथा बनारसक चर्चा सेहो अछि।
मिथिला नामकरणक प्रसङ्ग अनेक पौराणिक आधार अछि। किछु विद्वानक मत छनि जे मिथिलाक नामकरण राजा ‘मिथि’क नाम पर भेल अछि। अयोध्याक राजा निमि मिथिलाक एहि त्यागमय भूमि पर अयलाह तथात निमिक पुत्र मिथिक नामपर एहि भूभागक नाम मिथिला पड़ल। किन्तु मिथिला नामकरणक प्रसङ्ग मिथिलाक प्रसिद्ध विद्वान पाणिनिक मत एहिसँ भिन्न अछि। हुनक कहब छनि जे जतय शत्रुक मंथन कयल जाय ताहि भूभागक नाम मिथिला अछि। मैथिल वीर योद्धा होइत छलाह तथा महाभारतक युद्धमे मिथिलाक राजा ‘क्षेमद्युति’ पाण्डवक संग युद्ध कयने छलाह। वाल्मीकि रामायणमे सेहो मिथिलाक चक्रवर्ती
नरेशक वीरताक वर्णन भेल अछि।
अति प्राचीन कालहिसँ मिथिला बौद्धिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रमे सम्पूर्ण भारतवर्षमे प्रसिद्ध रहल अछि। एक दिस जँ दर्शन शास्त्रक गूढ़ रहस्यक प्रतिपादन होइत छल तँ दोसर दिस कर्मयोगक अभ्यास। ऋषि लोकनि तपस्यामे लीन रहैत छलाह। जनसाधारण अन्न-फल-फूलक उत्पादन कऽ एहि भूभागके शस्य स्यामला बनौने रहैत छल। एक दिस वेदाभ्यास होइत छल तँ दोसर दिस तत्वचिन्तन। यैह ओ मिथिला अछि जाहिठाम बुद्ध आ महावीर उत्पन्न भऽ अपन अमर वाणीसँ विश्वक संतप्त मानवताके चिरशांतिक मार्गक दर्शन करौने छलाह। यद्यपि मिथिला भगवान महावीर आ बुद्धक कर्मक्षेत्र आ जन्मस्थल छल तथा वैशाली बौद्ध धर्मक प्रधान केन्द्र। मिथिलावासी बौद्ध धर्मसँ प्रभावित तँ नहिएँ छलाह तें ओकर प्रत्यक्ष आलोचना सेहो करैत छलाह। ह्वेन सांगक यात्रा-वृत्तान्तसँ स्पष्ट होइछ जे सातम शताब्दीमे हर्षवर्द्धन साम्राज्यक ई अङ्ग छल।
दर्शनक क्षेत्रमे मिथिलाक उपलब्धि सर्वाधिक छल। न्याय सूत्रक प्रणेता गौतम, याज्ञवल्क्य-स्मृतिक रचयिता याज्ञवल्क्य, वैशेषिक दर्शनक प्रणेता कणाद तथा नव्यन्यायक जनक गंगेश उपाध्यायक आ श्रीहर्ष दर्शनक कारणे मिथिला दर्शनक क्षेत्रमे पूर्ण प्रसिद्धि प्राप्त कयने छल। हिनका लोकनिक अतिरिक्त उद्योतकर (छठम शताब्दी), मण्डन (सातम’शताब्दी), वाचस्पति (नवम शताब्दी), तथा उदयन (एगारहम शताब्दी) क नाम उल्लेखनीय अछि। वेदान्त सूत्रक शंकर भाष्यक व्याख्या वाचस्पति द्वारा भामती नामसँ लिखल गेल अछि। मण्डन एवं शंकराचार्यक शास्त्रार्थ तँ प्रसिद्ध अछिए। उदयन लक्षणावली एवं आत्मतत्व विवेकक रचना कयलनि। गंगेश उपाध्यायक नव्यन्याय बंगाली विद्वान लोकनिके पूर्ण आकृष्ट कयने छल। जैमिनिक मीमांसा तथा कपिल मुनिक सांख्य दर्शनक निर्माण सेहो एही पुण्यभूमिक मनोरम वातावरणमे भेल छल। एहि मिथिलाक महान नगरी इतिहास प्रसिद्ध तथा बौद्ध एवं जैन धर्मक मुख्य प्रभाव क्षेत्र लिच्छवि वंशक राजधानी प्रजातंत्रीय व्यवस्थायुक्त वैशाली प्राचीन इतिहासमे महत्वपूर्ण स्थान रखैत आयल अछि।
मिथिलाक प्राचीन सांस्कृतिक परम्पराक वर्णन बौद्ध तथा जैन ग्रंथमे सेहो भेल अछि। एकर आचार-व्यवहार, एकर ज्ञान गरिमा एवं सामाजिकं जीवनक विभिन्न पक्षक वर्णन एहि बौद्ध एवं जैन ग्रन्थमे भेल अछि। बौद्ध धर्मक प्रचारक समयमे जातक ग्रंथक रचना भेल। एहि जातक कथा सभमे विभिन्न दृष्टिकोण राखि नव-नव कथाक निर्माण भेल। एहि जातक कथामे मिथिलाक माटि-पानि, जनसाधारणक अनुभूति, विचारधारा, जीवन संघर्ष, शिल्प एवं कलाक संग-संग वाणिज्य व्यापारक चित्र सेहो अंकित अछि। किन्तु मुसलमानी आक्रमणक फलस्वरूप सामाजिक जीवनक स्वरूपमे परिवर्त्तन भेल। ‘कीर्तिलता ‘मे वर्णित एहि परिस्थितिक चित्र द्रष्टव्य थीक :
“धरि आनए बाभन बटुआ, माथा चढाएब गाइक चुडुआ। फोठ चाट जनउ तोड़, उपर चढ़ाबए चाह घोड़ ।।
सम्भव थीक एहि प्रकारक सामाजिक विश्रृंखलताक वातावरणमे पुरुष परीक्षामे वर्णित आदर्श चरित्रक निर्माण कऽ विद्यापति अपन सामाजिक दायित्वक पूर्ति कयने होथि। ‘पुरुष परीक्षा’मे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-विभिन्न पुरुषार्थके प्राप्त करबाक मार्ग देखाओल गेल अछि। पुरुषपरीक्षा सामाजिक एवं आध्यात्मिक दुनू दृष्टिएँ महत्वपूर्ण रचना अछि। मिथिलाक सांस्कृतिक अभ्युन्नतिक इतिहासक अध्ययनसँ ज्ञाते होइछ जे तेरहम शताब्दीसँ विभिन्न विषयक रचना एहि ठाम होबय लागल। एहि प्रसंग चण्डेश्वरक नाम उल्लेखनीय अछि। चण्डेश्वर राजनीति, धर्म, न्याय आदि अनेक विषयक ग्रंथक रचना कऽ प्रसिद्धि प्राप्त कयलनि। हिनक अतिरिक्त वीरेश्वर, रामदत्त एवं हरिनाथक नाम सेहो उल्लेखनीय अछि। एहि प्रकारे मिथिला बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दुनू क्षेत्रमे अपन ज्ञानक गरिमाक कारणे अङ्ग-कलिङ्ग सँ ब्रज निकुञ्ज धरि ओ हिमालयक उत्तुंग हिम श्रृंखलासँ शंकराचार्यक पुण्य भूमि कन्याकुमारी तक विख्यात छल। मिथिलाक अधिकांश राजा संस्कृति, साहित्य, दर्शन ओ ललितकलामे रुचि रखैत छलाह ओ कतोक राजा संस्कृत्तक विद्वान सेहो छलाह। महाराज महेश ठाकुर तँ अपन विद्वत्ताक कारणे मिथिलाक राज्ये प्राप्त कयने छलाह। सांस्कृतिक अभ्युदयक एक कारण ईहो छल जे मुसलमानी आक्रमणसँ संत्रस्त हिन्दू समाजक रक्षाक हेतु विद्वान लोकनि विभिन्न प्रकारक ग्रंथ लिखि सामाजिक एवं नैतिक आचरणक नियमक निर्माण कऽ देलनि। ई विद्वान लोकनि न्याय, मीसांसा एवं स्मृतिक अनेकानेक ग्रंथ लिखि हिन्दू समाजक सुरक्षाक मार्ग प्रशस्त कयलनि। मिथिलाक वर्णन करैत विद्यापति अपन पुरुष परीक्षामे कहैत छथि-
‘अहोतीरभुक्तीयाः स्वभावाद् गुणगर्विणः भवन्ति’ ।
किन्तु एहि ठाम दर्शन धर्माचरण सम्बन्धी ग्रंथ मात्रक रचना नहि भेल अपितु संस्कृत, अपभ्रंश एवं मैथिलीमे अनेक काव्य ग्रंथक रचना सेहो भेल।
भानुदत्त ‘रसमञ्जरी’क रचना कयलनि, गोवर्द्धनाचार्य ‘आर्या सप्तसती ‘क। कविशेखराचार्य ज्योतिरीश्वर तँ मैथिलीमे ‘वर्णरत्नाकर’ नामक गद्य ग्रंथक रचना कऽ आधुनिक भारतीय भाषामे काव्य रचनाक मार्ग प्रशस्त कऽ देलनि। ज्योतिरीश्वरक पश्चात् विद्यापतिक कोमलकान्त पदावलीक रसास्वादन कऽ पूर्वोत्तर भारतवर्षक साहित्य-मनीषी भावविर्भार भऽ गेलाह । मिथिलाक सङ्ग असम, बंगाल एवं उड़ीसाक घनिष्ठ सम्पर्क रहबाक कारणे विद्यापतिक गीत-माधुर्य एहि प्रान्तक जनमानसके अभिभूत कऽ देलक। हिनक गीतक अनुकरण पर एक नवीन भाषा ब्रजबूलिक जन्म भेल। असमक दर्शनीय अभिलाषी आ भक्ति आंदोलनकर्ता प्रसिद्ध वैष्णव भक्त मिथिल शंकरदेव तथा बंगालक महाप्रभु चैतन्यदेव तँ सहजहि विद्यापतिक गीत सुनि आत्मविस्मृत भऽ जाइत छलाह। विद्यापतिक पश्चात् गोविन्ददास, मनबोध, हर्षनाथ, चन्दा झा आदि मैथिलीकवि लोकनिक वैभवपूर्ण परम्परा विद्यमान अछि। मिथिलाक इतिहास वीर योद्धा लोकनिक गाथासँ सम्बद्ध नहि अछि ई सत्य किन्तु एहिठामक राज दरबार साहित्य एवं दर्शनक चर्चाक केन्द्र रहल अछि एवं मिथिला अपन वैभवपूर्ण साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परम्पराक कारणे भारतवर्षमे प्रमुख स्थान रखैत आयल अछि।