मित्रपाल शिशौदिया “मित्र”
आ गया है क्या जमाना आजकल
आदमी झूठा फसाना आजकल
कर रहा है वो सितम हर बात पर
लग रहा हक पर निशाना आजकल
बात दौलत की हमेशा ही करे
मिट रहा सच का खजाना आजकल
बात रिश्तों की करेगा जब मिले
हो रहा मुस्किल निभाना आजकल
अब भरोसा आदमी पर है नही
लाजमी है आजमाना आजकल
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मित्रपाल शिशौदिया “मित्र”
2122 2122 212