*”मित्रता”*
“मित्रता”
कृष्ण सुदामा की मित्रता ,
अहंकार स्वार्थ से परे तृप्त हृदय प्रेम विश्वास।
कंटक पथ दूरगामी पग पखार ,
आत्मीय मिलन अपनेपन का सुखद एहसास।
कृष्ण सुदामा सी मित्रता
अटूट बंधन में बंधे साथ खाते खेलते हुए,
गुरुकुल में मिलते बचपन का मित्र है खास।
संकट की घड़ी में साथ निभाये ,
सुख दुःख दर्द में चेहरा चमकता सुहास।
कृष्ण सुदामा सी मित्रता
सरल सहज सहर्ष स्वीकार कर ,
निश्चल प्रेम समर्पण भाव सुवास।
कृष्ण सुदामा की मैत्रीय भाव वरदान ,
सागर में मोती मिले मृदु बानी बुझाये प्यास।
कृष्ण सुदामा सी मित्रता
चाहे हीरे जवाहरात मोतियों का अंबार ,
मुठ्ठी भर चावल से झोपड़ी बनी महल निवास।
राजा हो या रंक भेद न कोई जाने ,
कृष्ण सुदामा के शुद्ध विचारो का हुलास।
अद्वितीय मित्रता की मिसाल लिए हुए ,
सच्ची श्रद्धा भक्ति समर्पण प्रेम और विश्वास।
कृष्ण सुदामा सी मित्रता
जय श्री कृष्णा जय श्री राधेय
शशिकला व्यास✍
स्वरचित मौलिक रचना