मित्रता स्वार्थ नहीं बल्कि एक विश्वास है। जहाँ सुख में हंसी-
मित्रता स्वार्थ नहीं बल्कि एक विश्वास है। जहाँ सुख में हंसी-मज़ाक से लेकर संकट में साथ देने की जिम्मेदारी निभाई जाती है। यहाँ झूठे वादे नहीं बल्कि सच्ची कोशिशें की जाती हैं। अक़्सर हम किसी प्रगाड़ परिचित को अपना मित्र समझने की भूल कर बैठते हैं। यह भी सत्य है कि हमारी मित्रता को लोग हमारी कमज़ोरी समझ बैठते हैं।
डॉ तबस्सुम जहां