“ मित्रता की दीवार “
“ मित्रता की दीवार “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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मित्रता में जब तक
विचारों का मेल नहीं होगा
तब तक मित्रता बैसखियों पर
रेंगती चलती रहेगी !
लाख कोशिश से महलों का
निर्माण क्यूँ न कर लें
खोखली दीवारें ,फर्स और नींव
सारी हिलती रहेगी !!
हम जब कभी अपनी
विचारधाराओं को किसी के
माथे पर बराबर अशिष्टता से
हम प्रहार करते हैं !
हमें नहीं ज्ञात होता है
और नहीं हम जान पाते हैं
किसे यह चोट लगती है
और किसी के प्राण उड़ते हैं !!
सहयोग की बातें डिजिटल
मित्रता में कौन करता
बस विचार जब मिल गए
तो सहयोग सारे मिल गए !
मिलना कहाँ इस मित्रता में
यह तो दिवास्वप्न है
संदेश सद्भावनाओं के सहारे
प्यार सारे मिल गए !!
वो जो कहता है जो अपनी
लेखनी में लिखता है
अच्छा लगे तो पढ़के उसे
आभार से सिक्त कर दो !
विभेदों के जो घेरों में
यदि कोई बात दिख जाए
उसे नजर अंदाज करके
अपनी सोच को रिक्त कर दो !!
नसीहत लिखके पैगामों का
मंत्रोचार करना छोड़ दो
भ्रांतियाँ की फसलें पनप कर
पकने लग जाती है !!
लिखेंगे सुंदर सी बातें
और सुधार की देंगे हिदायत
लोग को लग सकता है बुरा
और चोट लग जाती है !!
डिजिटल मित्रता का रंग फीका
ढंग फीका है सदा ही
सम्हल कर पानी की फुहारों को
हमें छिड़कना होगा !
बरना हम लोगों से धीरे -धीरे
बिछड़ते चले जाएंगे
और फिर वे लोगों से
सदा के लिए दूर जाना होगा !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका