मित्रता अतुल्य है,
मित्रता अतुल्य है, बहुमूल्य है ये भावना ,
अहम का है समर्पण , संबंध की ये साधना |
सुखद कोमल भावनाओं का समागम मित्रता ,
प्राण इस संबंध का है वचन की प्रतिबद्धता |
आस्था हो मित्र पर सद् हृदय से व्यवहार हो ,
सदा कुसुमित रहे कानन बस यही उदगार हो |
सुभेक्षा ,संदर्भ रहित , स्नेह का उपहार हो ,
मित्रता में सदा निज स्वार्थ का प्रतिकार हो |
मन का सामंजस्य है ये , देव का वरदान है ,
‘दीप’ नमन है उनको जो रखते मित्रता का मान है ||
-कुल’दीप’ मिश्रा