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29 Jan 2021 · 1 min read

“मिठ्ठूराजा”

छत पर आया मिट्ठू राजा।
मन को भाया मिट्ठू राजा ।।
रंगत से वह हट्टा-कट्टा ।
उसके कंठ मढ़ा था पट्टा ।।

कुछ दिन से रूखा-रूखा था।
शायद वह सच में भूखा था।।
जाने कैसा भय था उसको।
मुझसे कुछ आशय था उसको।।

झुककर टेढ़ी गर्दन करता।
दाना-पानी मुँह में भरता ।।
पत्थर से वह चोंच रगड़ता।।
धीमी आहट सुनकर डरता।

कुछ दिन तक वह प्रतिदिन आया।
हिलमिल दाना-पानी खाया ।।
कुछ दिन बाद गगन में खोया।
मैं उसकी यादों में रोया ।।

जगदीश शर्मा सहज
रचनाकाल 03/06/2020 की भोर

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