“मिठ्ठूराजा”
छत पर आया मिट्ठू राजा।
मन को भाया मिट्ठू राजा ।।
रंगत से वह हट्टा-कट्टा ।
उसके कंठ मढ़ा था पट्टा ।।
कुछ दिन से रूखा-रूखा था।
शायद वह सच में भूखा था।।
जाने कैसा भय था उसको।
मुझसे कुछ आशय था उसको।।
झुककर टेढ़ी गर्दन करता।
दाना-पानी मुँह में भरता ।।
पत्थर से वह चोंच रगड़ता।।
धीमी आहट सुनकर डरता।
कुछ दिन तक वह प्रतिदिन आया।
हिलमिल दाना-पानी खाया ।।
कुछ दिन बाद गगन में खोया।
मैं उसकी यादों में रोया ।।
जगदीश शर्मा सहज
रचनाकाल 03/06/2020 की भोर