मिट्टी है अनमोल
गीत
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मिट्टी से घुल-मिल रहना है
मिट्टी है अनमोल
सुन्दर सुन्दर घर बन जाते
जहाँ हम सभी जीवन पाते
गर्मी सर्दी और वर्षा से
राहत पाते नहीं अघाते
आते जाते कहती माटी
अपनी आँखें खोल
बहकर वर्षा के पानी में
राहें जानी अनजानी में
खूब बही जाती है देखो
मौन समय की मनमानी में
सागर में मिल जाती गुपचुप
कभी न पाती बोल
साथ हवा के उड़ जाती है
स्थान नया फिर से पाती है
पानी हवा सभी से मिलकर
फसलें नूतन उग आती हैं
इसीलिए तो सब कहते हैं
यह दुनिया है गोल
रिमझिम मौसम में सावन में
वन उपवन में घर आँगन में
सौंधी खुशबू को बिखराकर
प्यार जगा देती हर मन में
निश्छल मन का साथ निभाती
करती खूब किलोल
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य