मिट्टी तो उर्वर है
मिट्टी तो उर्वर है पौधे उग जाएंगे ।
पत्थर पर तुम फूल खिलाओ ,
तो जानें ।।
सूरज उगने पर उजियारे छा जाएंगे ।
अंध तिमिर में दीप जलाओ ,
तो जानें ।।
नाव स्वयं चलती है धारा के रुख में ,
जैंसे जीवन हँसता चलता है सुख में ।
धारा के विपरीत चलाये जो नौका ,
शूर वही माँझी मुस्काता है दुःख में ।।
उत्सव में मेहमान स्वयम ही आ जाएंगे ।
मातम में आकर बतलाओ ,
तो जानें ।।
ज्यों गाड़र का ठाठ चले बीहड़ वन में ,
ऐंसे ही चलते कुछ मानव जीवन में ।
हाँक लगाने वाला ले जिस ओर चले ,
चलते जाते अंध मति अपनेपन में ।।
आंखों वाले खुद रस्ते पर आ जाएंगे ।
नयन हीन को पथ दिखलाओ
तो जाने ।।