मिट्टी के घर
मिट्टी के घर,
छोटे कच्चे बनते प्रेम से,
परिवार होता इसमें।
ना मंजिल ऊपर,
ना बँटकर अलग कोई रहता,
संतोष से जीते।
दुख और सुख,
एक ही छप्पर तले निभाते,
एहसास अपना जताते।
प्रेम का घरौंदा,
होता मिट्टी के घर में,
तपता ना धूप में।
ना दौलत शोहरत,
ना माँगता लालच संगमरमर का,
धरा माटी काॅफी ।
मिट्टी का जीवन,
मिट्टी होना घर एकदिन तो,
मिट्टी संग रहना।
रचनाकार
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।