“मिट्टी का घर”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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बनी होती थी
मिट्टी से
हमारे घर की दीवारें
खुला आकाश
होता था
जहाँ थी प्यार की बातें
सभी को
जानते थे हम
मधुर संबंध था
सब का
नहीं थी दूरियाँ
हम में
नहीं था भेद ही मन का
करें मेहनत
सभी मिलकर
कृषि आधार बनता था
उपज होती थी
खेतों में
सभी का घर सँवरता था
खुले आकाश
के नीचे
खुली हम साँस लेते थे
प्रकृति की छांव
में रहकर
सदा ही स्वस्थ्य रहते थे
हमारी जरूरतें
कम थी
यहाँ सिर्फ प्रेम मिलता था
इन्हीं सुंदर
दीवारों में
मेरा संसार रहता था !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
19.10.2024