ग़ज़ल_ लगे करने कलम सर को…..
ग़ज़ल _मिटाने को वतन मेरा…..
मिटाने को वतन मेरा,लिये अंगार बैठे हैं।.
न जाने अब लिये कैसे,जो ये हथियार बैठे हैं।
यकीं भी था नहीं जिन पर जरा’आवाम को कल तक,
लगे उनको कि अच्छी वो लिये सरकार बैठे हैं।
गुनाहों का था इक दरिया रहे थे अब तलक डूबे,
कहें हर रोज वो भी ये,लिए संस्कार बैठे हैं।
लुटा दी है गरीबों की बहुत दौलत अयाशी में,
सजाया अक्श है खुद का,लिये अखबार बैठे हैं।
समंदर से कहो इक बार सर उँचा करे अपना,
हसीं जज्बे की हम भी तो लिये पतवार बैठे है।
गिरी जो गाज अब कोई,किसी मजहब के आका पर,
लगे करने कलम सर को,लिये तलवार बैठे हैं।
हमारे मुल्क पे कोई जरा सी आँच भी आयी,
रखी है जाँ हथेली पे लिए तैयार बैठे हैं।
✍शायर देव मेहरानियाँ _ राजस्थानी
(शायर, कवि व गीतकार)
slmehraniya@gmail.com