मिजाज
आज मौसम की तरह हो गया है इंसानों का मिजाज,
कहीं रिश्तो में खटास,
तो कहीं पैसों की लेनदेन से बढ़ गई कड़वाहट,
दिलों में दूरी तो फिर गवारा था,
दिलों के इस भंवर ने तो जी ही ले डाला था,
बिजली के बिल से तो मानो कोई बिजली कौधी,
जिसकी ना रोशनी थी ना कोई आवाज,
अब तो बसंत में भी पतझड़ है,
शीतल हवा का झोंका भी तूफान का संदेश सुना देता है,
हर आहट पर मानो फिर मौसम बदल गया है जनाब,
ठीक उसी तरह जिस तरह लोगों का बदल गया है मिजाज,
सर्दी में गर्मी गर्मी में सर्दी,
है आम यह बात,
बदलते वक्त में संभल जाओ ।
इंसान हूं इंसान की पहचान बन जाओ।