माॅ प्रकृति
रंग-बिरंगे फूलों-कलियों,तितलियों से सौंदर्य बढ़ाती
भौरों,चिड़ियों और कोकिल कंठो से संगीत सुनाती
कीट-पतंगों,मधुप,झीगुरों से तुम सरगम बजवाती
वन-उपवन,मधुबन,मधुर-मधुर मालकोश सुनवाती
जब मैना,मोनाल,बुलबुल,कोयल सब संग में गाती
हे प्रकृति! तुम भी कितना अद्भभुत सृजन सजाती
कितनी रंगबिरंगी,सतरंगी बनायी तूने ये तितलियां
और चमकती,इठलाती हुई इतनी सारी मछलियां
हरा समंदर,नील गगन,हरी-भरी धरती इन्द्रधनुषी
सजा-धजा सकती है ये तुम जैसी ही कोई विदुषी
ये झील,झरने,ताल-पोखर,जलधारा,नदिया निराली
ये बरखा,फुहारें,हिम,बिजली,गरजती घटाएँ काली
मंद-मंद बयार में फलों से है लदी लहराती डाली
जामुन,अंगूर झूमे जैसे ये गोरी के कानों की बाली
कृति प्रकृति तुम्हारी अतुल्य-अनूठी अपरम्पार है
तुम सरीखा ना कोई कर्ता न ही कोई चित्रकार है
मैं नही कर पाऊंगा माॅ प्रकृति तेरा वृहद बखान
बस एक शब्द कह सकता माॅ तुम्ही हो ‘महान ”
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मौलिक एंव स्वरचित:रचना संख्या-१६
जीवनसवारो,मई २०२३.