‘माॅं बहुत बीमार है’
मुझे देख लेती है..
हॅंसकर भी रोती है।
हाथों से चादर की..
सिलवट टटोलती है।
पापा की सांसो की,
व्याकुल सी यादों से,
मन के हर कोने में..
उलझन बेशुमार है।
शीश छुपा लेटी है…
माॅं बहुत बीमार है।।
पवन झाॅंक लेती है
हृदय ढाॅंप देती है
मुस्कुराती दिखती है
नीम की वो छाॅंव है।
उसके है सपनों में
बसा उसका गाॅंव है।
सुधियों में उसकी वो
नहरिया की धार है।
शीश छुपा लेटी है…
माॅं बहुत बीमार है।।
घर जबसे रीता है
मुॅंह उसका फीका है।
वो मुझे पुचकारती
ऑंख छलछलाती है।
छुप-छुप के नज़रें भी
मेरी उतारती है।
चूमती है माथ भी
करती बस दुलार है।
शीश छुपा लेटी है…
माॅं बहुत बीमार है।।
थरथराते हाथ को
मौन हो देखती है।
कुछ दुआएं हाथ जोड़
अंबर तक भेजती है।
अनगिन हैं बातें भी
टूट रहीं सांसें भी।
शून्य जैसा हो रहा
मेरा संसार है।
शीश छुपा लेटी है…
माॅं बहुत बीमार है।।
चाहती हूॅं सजग हो
गीत गाए वो अभी।
रोक लेना चाहती
हाथ में मैं ये सदी।
हैं बड़े अनमोल पल
टूटने मैं भी लगी।
आशीष आलिंगन में
भरा जीवन सार है।
शीश छुपा लेटी है…
माॅं बहुत बीमार है।।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ