माहिये
***** माहिये ******
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1
सोने का ताज सजा,
देख कर दिल भरे,
पहन कर आये मज़ा।
2
पतझड़ की तान छिड़ी,
भंवर झूम रहे,
पराग पर नज़र पड़ी।
3
नजरों से नज़र मिली,
गौरी शरमाती,
हया से आँखें झुकी।
4
सूरत कयामत भरी,
छाती बल खाती,
तबीयत होती हरी।
5
सावन का मास चढ़ा,
बादल झूम रहे,
तन-मन तो फूल रहा।
6
मनसीरत दर आया,
आंगन देख सजा,
मन भी है भरमाया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)