माहिया – डी के निवातिया
माहिया
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सावन सूना जाए
तेरे बिन साज़न
बरखा मुझे ना भाये।।
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ये सावन के झूलें
कहते है हर पल
तुमको कैसे भूलें ।।
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पूछे मुझ से रातें,
सइयां ना समझे
मेरे मन की बातें ।।
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देखा तुमको जब से
दिन हो चाहे रैन
मांगूँ तुमको रब से ।।
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चाक़ू से न गोली से,
नफ़रत मरती है,
बस प्रीत की बोली से !!
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डी के निवातिया