मासूम
निर्बोध तन मन लिए I
खिलते हुए जन्मते है।
अपने में सिमटकर,
रोते- हँसते है ।
बहुत खूब दिया है।
ईश्वर ने उपहार,
मानव तन- मन को।
मानव तन के लिए,
देवता भी मचलते है।
पाना है सार
आकर संसार,
जिनके लिए जन्मते हैं।_ डॉ. सीमा कुमारी, बिहार
(भागलपुर ) दिनांक- 7-1-021 की स्वरचित कविता है जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ।