“मासूम बचपन”…..
रात ख्वाब में अजीब मंजर देखा,
बीच राह मासूम एक, बना मुजरिम देखा।
गली, मोहल्लों ने जुटा रखी थी भीड़,
भीड़ में उस, एक बचपन को छुपा देखा।।
पूछ रहे थे जब बार-बार नाम उसका ,
अता-पता, ठौर और ठिकाना जिसका ।।
बोल तो क्या छिपाया है? क्यों चुराया है??
तोड़ ख़ामोशी, रात इतनी क्यों जगाया है।।
बच्चा गुमसुम, आँखों में समन्दर था।
हाथ में एक रोटी, तो दूसरे में खंजर था।।
आलम देख ये , आँखे नम हो आई मेरी,
जाने कहाँ छिपी बैठी थी इंसानियत हमारी।
कहे ‘सत्या’ ये मेरा-मेरा अब हो जाए तेरा,
ऐसा ख्वाब न आए क़भी फिर दोबारा ।।
Satya Shastri.jind(HR.)