मासूम दिल का डेरा।
ये मासूमियत उनके दिल की है,
अनजानों का हाल पूछते है,
ऐसे परिंदो की है यह मासूमियत,
बेफिक्र औरों को अपना घर समझते है।
दाना पानी मुक्कदर के हाथोंं में,
बस जाते है बेगानों के दिल में,
कौन आता जाता है वीरान घर में,
प्रेम की चहक से मिटा देते है दूरियाँ।
घर के आँगन में,खिड़कियों और झरोखों में,
सजाते है सपने संसार बचाने को,
उड़ जाना है पंछी एक दिन,
छोड़ देह के पिंजरे को एक कोने में।
जिन्दगी है बसेरा कुछ लम्हो का यहाँ,
औरों को भी रहने दो अपने ही है सदा,
अपनी मासूमियत उनको भी जता दो,
उनके लिए है आपके दिल में प्रेम की जगह।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।