माला के जंगल:
कुछ तपस्वी से लगते हैं
शांत भाव से तप करते हैं
हरे भरे तरोताजा से
प्रफुल्लित मन से खड़े हुए हैं ।
कुछ बुझे बुझे मुरझाये से हैं
कुछ झाड़ बन चिड़चिड़ाए से हैं
विभिन्न रूप लिए अनोखे से हैं
ये माला के जंगल ।
कहीं घने घने से मिले जुले से
मित्र भाव से खड़े हुए से ।
कुछ सूखे से झाड़ी बनकर
उलझे उलझे फंसे फंसे से
मानो एक दूजे से रूठे हुए से
बैठे हैं ये माला के जंगल ।
कहीं कहीं टेढे़ मेढे़ से
ऊपर नीचे उलटे सीधे से
मोटे पतले लगते विलोम से
जाने कैसे मिले जुले से
हैं ये माला के जंगल ।
कहीं बांस के झुंड खड़े हैै
कहीं साल ,सीसम ,
सागौन मिले है
भिन्न भिन्न कुसुमों से सुरभित
मानो खुशी से सराबोर हुए हैं
ये माला के जंगल ।
डॉ रीता
(माला रेंज तराई क्षेत्र के संरक्षित जंगल हैं )