मालती सवैया
मुक्तक
संग भले दिखते जन हैं मन में पर मेल मिलाप नहीं है।
वे विष हाथ लिये कहते मन में अपने कोई’ पाप नहीं है।
घात सदा करते छुपके पहचान इन्हें बगुले सम हैं ये।
आज मनुष्य स्वभाव यही यह रंच भी’ व्यर्थ प्रलाप नहीं है।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)