मार मुदई के रे
मार मुदई के रे ई कईसन मौसम आईल बाऽ
एकेगो देह पर चार-चार गो बस्तर लदाईल बाऽ
तेपरो भागत नईखे देह से जाड़
केतनो कईल जाता कम्बल के आड़
मार मुदई के रे ई कईसन मौसम आईल बाऽ
एकेगो देह पर चार-चार गो बस्तर लदाईल बाऽ
का बुढ़ जवान लईका सयान
केहु के बसके नईखे जाड़ आसान
मार मुदई के रे ई कईसन मौसम आईल बाऽ
एकेगो देह पर चार-चार गो बस्तर लदाईल बाऽ
जवनकु लोगन के लथारे बुढ़ऊ लोगन के बिछावन धरावे
रोज संझिया सुबेरे तेल के मालिस बचवन लोगन के करावे
मार मुदई के रे ई कईसन मौसम आईल बाऽ
एकेगो देह पर चार-चार गो बस्तर लदाईल बाऽ
सर्दी-जुखाम-खांसी के बात पुछबे मत करी
बचपन होखस चाहे पचपन केहु के बकसबे ना करी
मार मुदई के रे ई कईसन मौसम आईल बाऽ
एकेगो देह पर चार-चार गो बस्तर लदाईल बाऽ
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कवि : जय लगन कुमार हैप्पी