मार गई मंहगाई कैसे होगी पढ़ाई🙏🙏
मार गई मंहगाई कैसे होगी पढ़ाई
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मां बाप का होता निज सपना
पढ़ा लिखा बच्चों को बनाऊंगा
समझदार भारत का जन अपना
मार रहा मंहगाई कैसे हो भरपाई
आग उगल करती मजबूर महंगाई
पढ़ाई के खातिर बेची हमने घर द्वार
बची खुची जमीन जायदाद गिरवी
रख भरा फीस बच्चों का दिन रात
मजबूरी में पल रहा निज पेट
परिवार कीमत बड़ी चुका रहा
पढ़ाई का कमर तोड़ महंगाई में
छुट रहे अपने पराए रिश्ते नाते
एक साथ ही यह सोच मजबूरी में
मांग न कर दे कर्ज कभी छोड़
इसे अभी भलाई इसी में अपना
जन समझा मुफ्त सलाह दे रहे
पढ़ाई लिखाई से करो छुट्टी एकदम
किताबों से घर खाली रहे हरदम
कर कमाई पालो अपना परिवार
जीवन उत्साह उमंग बेच पढ़ा
एक अफसर बना सुख पाऊंगा
तन्हाई को दूर कर बड़े शहर में
सपनों का सुंदर निज घर होगा
श्रम धर्म से शानोशौकत लाऊंगा
महंगाई में जीने का तरकीब नई
निकाल दाना पानी रोटी खाऊंगा
पापा भेजो पैसा काट नाम घर
भेजेगा कैसे होगा पढ़ाई अपना
सुन बाप चकराता मां देख मुंह
गहना बेच बच्चे को पढ़ाता है
निज माटी की सुगंध बेच जन
मां ने सहर्ष साज श्रृंगार बेची है
पढ़ लिख बड़ा बनेगा मेरा नन्हा
पूरा होगा निज जग में सपना
भारत मां की लाल बनेगा मुन्ना
आया वह दिन भी बड़ा बना मुन्ना
चतुराई चलाकी से रिश्तों ने छीन
अलग किया मुझसे निज मुन्ना
गुम किया था मिठास जीवन से
दो पैसे खातिर कड़वाहट पाई
रस्सी बुनी तिनका चुनी तिल तिल
जोड़ पढ़ाई इस महंगाई में
मिट्टी चूल्हा बेच बेस्वाद खाना
खा महंगाई में बच्चे भी पढ़ाई
भोलापन अपनाई थी पर आज
अपने ही बच्चो से हुई रुसवाई
बरगद पीपल सी संयुक्त परिवार
बिछुड़ टूट पीढ़ी मुरझा गई है
परिवार जनों को इसकी तनीक
परवाह नहीं क्योंकि इन्हें मिली
वैभव सुख संपत्ति घमण्ड से चूर
दिखावे में भूल गया वंश संस्कृति
अतीत ऐसा कि माता पिता खाई
सूखी रोटी तन ढंकने वसन नहीं
महंगाई में बच्चों को पढ़ाई थी
संतोष साहस श्रम ध्यैर्य धर्म से
अपनी संस्कृति लाज बचाई पर
अपने बच्चों से दुःख तृष्णा पाई
इन लम्हों को याद कर विलख
छाती पीट पीट रो रही माताश्री
कोने से झांक बोल रहा पिताश्री
हाय रे हाय ये महंगाई कैसी दे दी
भोलेपन को जटिल ये मजबूरी
कैसे जीवन यापन होगी मेरी ।
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तारकेश्वर प्रसाद तरूण