**मार कर अरमान जलती आस है**
**मार कर अरमान जलती आस है**
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2122 2122 212
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झट भभकती खूब जगती आस है,
हाथ में दे हाथ चलती आस है।
साल दर सालों न बुझती प्यास ये,
खूब है हल चल न मिटती आस है।
देख कर वो खत पुराने आज भी,
जल उठे तन मन न दिखती आस है।
चांद तारे आसमां से देखते,
मन बहुत बेचैन बढ़ती आस है।
आग लगती जोर से सीना जले,
मार कर अरमान जलती आस है।
शोर सुन लो आन मनसीरत जरा,
रात दिन दिल से निकलती आस है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)