हृदय अभिराम करो
1-चाहें मोती सब यहाँ,बैठे सागर तीर।
चाँद मिला न चकोर को,मिली प्रेम की पीर।।
2-सेवा कर मेवा मिले,चोरी करके श्राप।
नीच कर्म मत कीजिए,जीवन हो अभिशाप।।
3-प्रीतम हाथी दाँत सम,लोग हुए हैं आज।
चिकने ऊपर से दिखें,काले दिल के राज।।
4-धोखा देकर मन हरें,पल में बदलें रूप।
वो मानव तो हैं नहीं,जो गिरगिट अनुरूप।।
5-काल रहा कब मौन है,मन बैठा क्यों सून।
गूँथे बिन रोटी नहीं,बैठ लिए तू चून।।
6-प्रीतम करता क्यों घृणा,मन में लेकर भेद।
अनपढ़-सा मज़मून है,मानवता विच्छेद।।
7-लड़ते-लड़ते सब मरें,कैसे हो भव पार।
मिलके धरती स्वर्ग हो,समझो सब नर-नार।।
8-हरियाली को देख कर,मन खुशहाली देख।
सीख सदा देते सुनो,संस्कारी सब लेख।।
9-मन सुंदर जन मन हरे,जीवन कर अभिराम।
देकर ख़ुशियाँ ख़ुश रहो,करके नित शुभ काम।।
10-प्रीतम छाया पेड़ दें,मेवा तज आधार।
मनुज लोभवश क्यों हुआ,मन में लेकर ख़ार।।
–आर.एस.प्रीतम
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