मारुति
धरे जनेऊ हाथ ले सोटा
द्वारे कोऊ बड़ा न छोटा
वानर मुख वज्र सी काया
विचित्र, निराली ताकी माया
देख्यो रमणीक लाल गेंद सो
झटपट निगल ही लियो रवि को
जग में भयो भीषण अँधियारो
देवनहीं करि विनती पुकारो
खोलने मुख ते रवि छुड़ायो
राम भक्त सदा कहलाये
लछिमन के तुम प्रान बचाये
भूत,पिशाच सब भय खावें
भक्ति से जो भी जन बुलावें
सुख,कीर्ति,यश अतिहि पावें
केसरीनन्दन,पवनसुत आये
अंजनीपुत्र,मारुति कहलाये।
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक