माये नि माये
डॉ अरूण कुमार शास्त्री 💐 एक अबोध बालक💐 अरुण अतृप्त
💐माये नि माये 💐
आगाज़ कर रहा हूँ , तेरी हसरतों से माँ
मैं जब भी घर से निकला , मुझे तूने दी दुआ ।।
दुनिया के सफ़र को , जब भी बढ़े कदम
तेरी दुआओं ने है की मेरे लिए बिस्मिल्लाह।।
मैं आदतन ही हरदम रहता हूँ हरकदम बेखबर बेखौफ
मालूम है मुझे ओ माँ तू जहाँ भी होगी करती होगी दुआ ।।
मेरी हर सांस पर है मुझको यकीन इतना
मुझे धूप न सतायेगी मेरी माँ का साया है साथ निकला ।।
पड़े जब कदम मिरे तपती हुई रेत पर
मिरे पाओ न जले ना ही कोई उफ़ ही निकली
मुझको यकीन था मेरी माँ है ठण्डी छाया ।।
आगाज़ कर रहा हूँ , तेरी हसरतों से माँ
मैं जब भी घर से निकला , मुझे तूने दी दुआ ।।
दुनिया के सफ़र को , जब भी बढ़े कदम
तेरी दुआओं ने है की मेरे लिए बिस्मिल्लाह।।
उम्र दराज़ हूँ अब और उम्र भी है हो चली मेरी
तेरी नज़र में रहुंगा पर, मैं मुन्ना, चाहे दाढ़ी सफ़ेद हो ली ।।
दुनिया के अलमों अमान से मैं
जब भी घबराकर देखता हूँ चारों तरफ़ ।।
मुझे तू ही दिखाई देती हैं चौखट से,
आसीस देती , अब तलक ।।
आगाज़ कर रहा हूँ , तेरी हसरतों से माँ
मैं जब भी घर से निकला , मुझे तूने दी दुआ ।।
दुनिया के सफ़र को , जब भी बढ़े कदम
तेरी दुआओं ने है की मेरे लिए बिस्मिल्लाह।।