*मायूस बेटियाँ नाशाद है*
मायूस बेटियाँ नाशाद है
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यह् कैसा देश आजाद है,
मायूस बेटियाँ नाशाद हैँ।
लूट रही है रोज अस्मतें,
कलियाँ हो रही बर्बाद हैं।
कैसे बचाएँ लाज लज्जा,
छिंटाकशी भरे संवाद हैं।
घर हो या बाहर पल में,
सीमाएं हुई अतिवाद है।
निगाहों में भरी वासना,
बातें उल्टी जनवाद है।
ये आबरू कैसे बचेगी,
हर तरफ तो अवसाद है।
कोरी बकवास सरकारें,
कहीं सुधार अपवाद है।
मनसीरत बिगड़ैल पीढ़ी,
चंगुल मे नहीं औलाद है।
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सुखविंद्र सिंगग मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)