माया
स्वप्न कहु या भ्रम
झूठ कहूं या धोखा
बंधन कहु या जंजाल
मोह् कहु या आकर्षण
माया तेरे रूप अनेक
सच कुछ और है
हर सच तेरे आगे झूठ है
युगो से जतन आरंभ है
फिर तेरे आगे सब का अंत है
माया तेरा भेद न कोई पाया
मोह पाश् तेरा ऐसा है
कोई ना बच कर जा पाया है
जो भी बचना चाहा है
भंवर जाल में फंसा खुद को पाया है
तेरी छत्रछाया में हर कोई जन्मा है
तेरे ही विषय विकारों में हर कोई मिटा है
सदियों से संतों की उम्मीद टूटी है
फिर भी लोगों की आंखों की पट्टी ना उतरी है
लोगों की फिर भी भरम में जीने की आदत है
माया आज भी कठिन पहेलीहै