माया फील गुड की [ व्यंग्य ]
‘फील गुड’ मुहावरे का इतिहास बहुत पुराना है। आदि देव शिव ने अनेक राक्षसों को इसका अनुभव कराया। भस्मासुर ने तो शिव से वरदान प्राप्तकर इतना फील गुड किया कि शिवजी को ही फील गुड कराने लगा। वह उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गया। आदि देव शिव भस्मासुर को तो फील गुड कराना चाहते थे, लेकिन भस्मासुर के फील गुड के सामने वह घबरा गये। अपने फील गुड को बचाने के चक्कर में उन्हें भस्मासुर के साथ-साथ उसके फील गुड का भी अन्त करना पड़ा।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने सुग्रीव को फील गुड, उसी के भाई बाली की हत्या कर कराया। उनके स्वयं के फील गुड पर जब एक धोबी ने शंकाओं के वाण दागे तो वे तिलमिला उठे। वे अपनी प्रिय और अभिन्न सीता को ‘राज-निकाला’ देकर ही अपने फील गुड के बचा सके।
महायोगी श्रीकृष्ण भी राधा और गोपियों को बांहों में भरकर फील गुड कराते रहे, किन्तु जब मथुरा के राजा बन गये तो उन्होंने रुक्मिणी के साथ-साथ कुब्जा को भी फील गुड कराया। उस समय उन्होंने वियोग में तड़पती राधा को, फील गुड के दूसरे रूप ‘निराकार’ से उद्धव के द्वारा परिचित कराया। पर बेचारी राधा की समझ में यह रूप नहीं आया।
गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन को फील गुड करना चाहते थे, इसके लिये उन्होंने एकलव्य का अंगूठा मांग लिया और अर्जुन यह देखकर फील गुड-फील गुड चिल्लाने लगा।
मौहम्मद गौरी ने जब भारत पर हमला किया तो पृथ्वीराज चौहान ने फील गुड कराने के चक्कर में अनेक बार उसे छोड़ दिया। वह पृथ्वीराज चौहान के फील गुड फैक्टर से इतना अभिभूत हुआ कि चौहान की गिरफ्तार करने के बाद ही उसके फील गुड के स्थान पर फील बैस्ट किया।
राजा मानसिंह ने जोधाबाई जब अकबर की अर्धांगिनी बनायी तो अकबर के मन में फील गुड की फसल लहलहायी।
गांधीजी अंग्रेजों के फील गुड फैक्टर से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें सारे के सारे क्रांन्तिकारी, आतंकवादी नज़र आने लगे। वे अंग्रेजों के फील गुड के चक्कर में जलियां वाले बाग के खूंखार किरदार ओडायर की खुलकर भर्त्सना करना भी भूल गये।
अंग्रेज, नेहरूजी को अपनी सत्ता सौंप गये। नेहरू जी भी भला किसी से क्या कम थे? उन्होंने गोरे सेठों के स्थान पर आये, काले सेठों से कहा-‘फील गुड |” काले सेठ गुड फील करते हुए इस देश का दोहन करने में जुट गये। नेहरू यहीं शान्त नहीं बैठे। उन्होंने फील गुड के लिए ‘हिन्दू-चीनी भाई-भाई’ का नारा देकर अपनी अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बनायी और माउंटवेटन से रिश्तेदारी निभायी।
इन्दिराजी का फील गुड फैक्टर बेहद प्रबल साबित हुआ। जब लोहियाजी के अनुयायी जयप्रकाश नारायण ने इन्दिराजी के फील गुड फैक्टर की हवा निकालनी चाही तो इन्दिराजी ने आपात-काल लगाकर पूरे देश से फील गुड करने को कहा। इन्दिराजी के फील गुड से प्रभावित होकर उनके सुपुत्र संजय गांधी ने नसबन्दी का अभियान चलाया।
युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी फील गुड के चक्कर में अपने नाना की तरह, अपनी अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बनाकर महान हो जाना चाहते थे। अतः उन्होंने श्रीलंका में शान्ति सेना को पठाया, पर लिट्टे को उनका यह सराहनीय कदम नहीं भाया। लिट्टे में मानव बम चलाया।
नरसिंह राव जब प्रधानमंत्री बने तो फील गुड करते हुए इतने तने कि अपने चार कदम भ्रष्टाचार के काले सूरज की ओर बढ़ा दिये। सी.बी.आई. ने उन पर कई केस लगा दिये।
पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी की उदारवादी नीतियों का फील गुड फैक्टर आज भी नौकरशाही पर इतना हावी है कि जनता का दोहन या उत्कोचन करने में न तो उसे शर्म आती है और न वह भय खाती है। नौकरशाही के लिये फील गुड के द्वारा बनाया गया भयमुक्त शासन का समाज, आज बाज का शक्ल ग्रहण करता हुआ, जनता के भविष्य पर झपट्टा मार रहा है। आम आदमी बेदम, निर्धन और बदहाल हैं पर कमाल है कि उससे सूखे खेतों में नयी आर्थिक-नीतियों के रंगीन सपने बोने और कंगाली में भी फील गुड होने को कहा जा रहा है।
बहरहाल भारतीय जनता हालीवुड-वालीवुड की अश्लील फिल्मों से फील गुड कर रही है। कर्जे में डूबते हुए कार और मोटरसाइकिल खरीद रही है। नयी आर्थिक-नीति पर गीद रही है।
भारत-उदय का यह नया दौर है, जिसमें न तो आम पर बौर है, न सरसों फूली है और न नये कुल्ले फूटे हैं, किन्तु हर राजनेता कोयल की तरह गा रहा है और बता रहा है कि आप माने या न माने फील गुड का वसंत आ रहा है।
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