माया का रोग (व्यंग्य)
कुण्डलिया छंद
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अल्प-आयु में चल बसे, दो हजार के नोट ।
किसको सुख अनुभूति है, किसको पहुंची चोट।।
किसको पहुंची चोट, नवल तू तो फकीर है।
नहीं तुम्हारे हाथ बनी धन की लकीर है।।
रूखी सूखी चाब, सांस ले खुली वायु में।
माया का यह रोग, सताता अल्प-आयु में।।
✍️ -नवीन जोशी ‘नवल’
(स्वरचित एवं मौलिक)