मायामुक्त
अधरों के रक्त से अपनी वह कंठ भिगोता है
पानी के ना होने को तुम प्यास कहते हो
आंखों की चिंगारी से उसका दीपक जलता है
महज सूर्य के ना होने को तुम रात कहते हो
पत्थरों के सीने पर वह स्दयंदन चलाता है
तुम इंधन गाड़ी में बैठ उसे कंगाल कहते हो
अधरों के रक्त से अपनी वह कंठ भिगोता है
पानी के ना होने को तुम प्यास कहते हो
आंखों की चिंगारी से उसका दीपक जलता है
महज सूर्य के ना होने को तुम रात कहते हो
पत्थरों के सीने पर वह स्दयंदन चलाता है
तुम इंधन गाड़ी में बैठ उसे कंगाल कहते हो