मायापुर यात्रा की झलक
हे हे नित्यानंद प्रभु !
कैसी तुमने कृपा करी।।
इस पापी कपटी अशांत ह्रदय पे।
दया की ऐसी बौछार करी।। १।।
ऐसे पुण्य कहाँ थे अपने ,
मायापुर में पग रख पाते।
गौरांग प्रभु की सुन्दर लीला ,
इस धाम में रहकर सुन पाते।। २।।
पंचतत्त्व का पहला दर्शन ,
और राधा माधव के कमल नयन।
नरसिंघ देव का हस्ता मुख ,
झकझोर दिया है अंतर्मन।। ३।।
कमल नयन की आभा में ,
पूरा मन था ऐसा अटका।
लगता था बस यही सत्य है,
बाकी सब बस छल और माया।। ४।।
प्रभुपाद की पुष्प समाधी या ,
गौरंगा का जन्मस्थान।
सब कुछ देखकर यु शांत रमण ,
आश्चर्यचकित था मेरा मन।। ५।।
कल कल बहता राम भजन ,
मुरारी गुप्त के आंगन में।
कैसा था अद्भुत संकीर्तन ,
श्रीवास के आंगन में।। ६।।
भक्तिविनोद के आंगन पहुंचे ,
नाव पे करते संकीर्तन।
वहां से पहुंचे सुरभी कुंज,
फिर नरसिंघ पल्ली के दर्शन।। ७।।
जहाँ किया विश्राम नरसिंघ ने ,
और अपने हाथों को धोया।
काश उसी देव स्थल पर ,
मेरा ह्रदय भी निर्मल हो जाता।। ८।।
शेष बचा था एक दिन ,
राधा माधव से मिलने का।
ह्रदय की धड़कन तीव्र हुई ,
जैसा पहले नहीं हुआ।। ९।।
करताल मृदंग और घण्टों के बीच ,
ऐसा आह्लादित था मेरा मन।
विग्रह नहीं साक्षात् कृष्ण हैं ,
हो गया था विश्वास अटल।। १०।।
पानीहाटी में आकरके ,
नित्यानंद ,कथा का पान किया।
संकीर्तन का आनंद लिया ,
और गंगा का आशीर्वाद लिया।। ११।।
फिर से कब आएंगे माधव ,
इस मायापुर के परिसर में।
कलियुग के भगवान् हमारे ,
श्री गौरंगा से मिलने ।। १२।।
यदि पापी मन के वशीभूत हो ,
हमसे कोई अपराध हुआ।
दया के सागर, हे नित्यानंद प्रभु ,
हमको अपने आश्रय में लेना।। १३।।
तेरे आश्रय में रहके,
जब अनर्थ निवृत हो जायेगा।
क्या पता, जीवन के अंत समय में ,
हमको गौरंगा मिल जायेगा।। १४।।