*मायापति को नचा रही, सोने के मृग की माया (गीत)*
मायापति को नचा रही, सोने के मृग की माया (गीत)
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मायापति को नचा रही, सोने के मृग की माया
1
मायावी मारीच संग, प्रभुजी के ऐसा खेला
प्रभु खोए बालक खोते, जाकर ज्यों कोई मेला
भाई जादू वाली ही, सीताजी को भी काया
2
भला हिरन सोने का भी, जग में कोई है पाता
मति को पलट लिख रहा था, जैसे दुर्भाग्य विधाता
बाण चला तो आर्तनाद, सुन सिय ने गच्चा खाया
3
खिंची लक्षमण-रेखा से, यदि सीता पार न जातीं
रचा दशानन-आडंबर, यदि समझ सिया कुछ पातीं
रहता सोचा दस सिर से, फिर सब कुछ धरा-धराया
मायापति को नचा रही, सोने के मृग की माया
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451