~~~~मायाजाल ~~~~
बहुत नजदीक से देखो
तो समझ आता है सब हाल,
इंसान फसता जा रहा है,
अपनी खुशिओं के लिए
पल पल, माया के जाल में….
सच है, कि इस के बिना
कुछ भी नहीं संभव होगा
पर मकड़जाल में बहुत बन
रहा उसके जी का जंजाल….
कमाने की चिंता में
सब कुछ खोता ही जा रहा
और अपने तन की परवाह के बिना
बुनता ही जा रहा है जाल…..
जिस के लिए कमाता है
वो भी देख रहे उस का हाल
झोक रहा अपना सब कुछ
कर कर के अपनी आँखें लाल….
उसको यह जिन्दगी बड़ी रास आ रही
माँ देख देख बेहाल हो रही
बच्चों ने उस का जीना किया बेहाल
बेटा कहता मुझ को दिला हो कार लाल लाल…
आज कुछ नया, कल लगता पुराना
तृष्णा का हिरण विचलित कर रहा
खो रहा अपनी सारी जवानी
कुछ सोचता नहीं,पर हो रहा बेजार…
अजीत कुमार तलवार
मेरठ