मायने
मायने
———
कमरे की खुली खिड़की से
घुसपैठ करता रहता है उजाला
करने को दूर अंदर का अंधेरा
बेबस है नहीं कर सकता दूर
मेरे अंदर का अंधेरा……………..
जाने क्यों दिखाना चाहता है
मेरी यादों में बसे
अपनों ही के उन चेहरों को
जो नहीं देखना चाहते मुझे
शिद्दत से जलाए थे चराग़
मैंने जिनके लिए
करने को रौशन जहान उनका
गुजरते वक़्त के साथ
करके अंधेरा मेरे जहान में
कर रहे हैं दूर कहीं
खुदगर्ज़ रौशन जहान अपना………..
खुद ही करता रहता हूं जद्दोजहद
वक़्त के साथ पसरते मेरे अंदर
अंधेरे को दूर करने की
नहीं है मेरे लिए कोई मायने
खुली या बंद खिड़की के………………
— सुधीर केवलिया