* मायने हैं *
** गीतिका **
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आपसी मतभेद सारे पाटने हैं।
तब कठिन होते समझने मायने हैं।
सत्य क्या है और क्या मिथ्या यहां पर।
जो हमें सब दिख रहा है सामने हैं।
बन्द आंखों से नहीं दिखता हमें कुछ।
किंतु फिर भी कुछ निशाने साधने हैं।
पास आने का समय जब मिल न पाए।
दृश्य हमको दूर रहकर ताकने हैं।
सत्य शब्दों में छुपा लेकिन कठिन है।
अर्थ भी हमको सभी के वाचने हैं।
कष्ट में सब सत्य मिथ्या छोड़ दें हम।
दर्द सबके नित्य ही मिल बांटने हैं।
कर्म पर अधिकार अपना सत्य है यह।
इसलिए बिल्कुल नहीं ये टालने हैं।
सत्य लिपटा हो अनेकों आवरण में।
हर परत के राज भी तब जानने हैं।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य