* मायने शहर के *
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* मायने शहर के *
#justareminderekabodhbalak
#drarunkumarshastriblogger
सुना है , इस शहर के मायने अच्छे नहीं हैं ।
इसलिए , अब दूसरा ठिकाना हूँ ढूँढता ।
खबर अखबार से पढ़ कर मैं यारों भेजता हूँ ।
कोई लगता है प्यारा , तो उसे मैं देता प्यार हूँ ।
बाकियों संग मैं बैठ कर नज़ारा देखता हूँ ।
है हसीन कुदरत में जो भी शे हैं कुदरतन ।
ये वाकया समझ कर रूह का हवाला दे रहा हूँ ।
तुम नहीं आओगी अब हाँथ छोड़े अरसा हुआ है ।
बैठ समंदर के कनारे लहरों का आना जाना देखता हूँ ।
चलो अच्छा हुआ कोई इल्जाम न तोहमत लगाई ।
बाद मुद्दत के सकू से अबोध किस्मत को कोसता हूँ ।
सुना है , इस शहर के मायने अच्छे नहीं हैं ।
इसलिए , अब दूसरा ठिकाना हूँ ढूँढता ।