मान जाने से है वो डरती
खबर किस बात की लेनी थी ,
अक्सर ये मालूम नहीं होता,
खबर उनकी जो तकनी थी,
उनको मालूम तभी से थी,
अब सिर्फ बात बिगड़नी थी,
अपनी हर रात उजड़नी थी,
खबर ये सब को हो गयी थी ,
दंगल ये किनसे होनी थी?
कभी हम इस करवट लेटे,
तो वो उस करवट पलटी,
करवटें बदलते रहे,
फिर भी ये आंँखे चार ना होती।
आलम ये आ गया था ,
सुबह भी पास ना आती,
पूँछ लूँ चार शब्द धोखे से,
तो माफी भी है कम पड़ती।
इश्क है ये खुशनुमा,
गुस्से में भी वो अच्छी लगती,
मानना मै अगर चाहूँ,
मान जाने से है वो डरती।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।