मानी बादल
हरियाली खोई बहाव में,
धूसर हो गई धरती की,
प्यारी-प्यारी चूनर धानी।
कितने बरसे बादल मानी?
पानी में डूबे गाॅंव-गाॅंव ,
कहाॅं जले चूल्हे औ’अलाव?
चारों तरफ पानी पानी।
कितने बरसे बादल मानी?
बिछड़े परिजन यूं बिलख रहे,
बच्चे भी भूख से तड़प रहे,
कैसी लिखी करुण कहानी?
कितने बरसे बादल मानी?
कल की चिंता ले ऑंखों में,
वे सिमटे भीगी पाॅंखों में,
फिर जुटाना दाना- पानी।
कितने बरसे बादल मानी?
कितना विचित्र खेल नियति का
कहीं बाढ़ कहीं है सूखा ।
ना करो प्रकृति से छेड़खानी
कितने बरसे बादल मानी ?
प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर (राजस्थान)