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21 Mar 2021 · 1 min read

माना मौसम अंगारों का

माना मौसम अंगारों का

माना मौसम अंगारों का
प्रखर -धनुष की टंकारों का
फिर भी अधरों की वसुधा पर
फसल हँसी की बोनी है ।

मौसम की मक्कारी आगे
झुकना तो मिट्टी होना है
खोना है आँखों का गहना
गालों पर आँसू ढोना है

माना दर्पण धूल सना है
आनन पर भी तिमिर घना है
फिर भी मन के दीवट पर
सौम्य दीपिका जोनी है ।

आतंकित होकर तूफ़ां से
नाविक नौका कब तोड़े है
भूले है कब पथ पुलिनों का
कब सागर गलियाँ छोड़े है

माना चोट बड़ी गहरी है
दर्द नदी आँगन ठहरी है
फिरभी धीर करों से अपने
नित जयमाल पिरोनी है ।

दशा दिनों की चंद्रकला- सी
सदा कहाँ थिर रहने वाली
अभी कटार सरीखी है जो
होगी कभी सुधा की प्याली

माना धुंध नहीं छँटती है
खंदक राह नहीं अँटती है
फिरभी काया की गाड़ी पर
साँस-गाँठ हँस ढोनी है ।
000

अशोक दीप
जयपुर

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 3 Comments · 331 Views
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