मानस हंस छंद
मानस हंस छंद
ललगालगा ललगालगा ललगालगा
(पिंगल सूत्र स ज ज भ र ) 15 वर्ण
जब देखते हम जिंदगी कुछ बेतुकी |
यह सोचते पग चाल आकर क्यों रुकी |
कुछ भी नहीं फल फूल है जब शाख पै –
सुनके नसीहत शर्म से वह क्यों झुकी |
अब लोग भी लगते मुझे कुछ वेंतुके |
चलते रहे वह देखने फिर क्यों रुके |
दिखता हमें कुछ मैल भी मन में भरा
रहने यहाँ वह प्रेम से अब क्यों झुके |
कब कौन आकर बात को पहचानता |
जग देखता शुभ तथ्य को कब जानता |
हठ धर्म भी सिर पै चढ़ा जब बोलता –
वह बात भी सब देर से कुछ मानता |
सुभाष सिंघई